13:33 सुजित बालवडकर 0 Comments Category : उनाड
इस मिट्टीसे खुन कि नमी
अभी सुखी नही है !
किसी नपुंसक के सामने
यह गर्दन झुकी नही है !!
वही सोनेकी चिडीया हमे
आबाद चाहिए !!!
नहीं गांधी
"हमें आझाद चाहिए ..."
यह कैसा ईश्क है
मौत ढूँढके लाया है
खूनसे खेले होली
और तिरंगा कफन पाया है
वही आशिकों का
फिर एकबार फिसाद चाहिए ! ! !
नही गांधी,
" हमें आझाद चाहिए "
- उनाड
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