ऐसी भी क्या जल्दी है
धीरे धीरे पछतायेंगे ऐसी भी क्या जल्दी है
फ़ुर्सत में सब ज़ख्म गिनेंगे ऐसी भी क्या जल्दी है
पहले तो दुनियावालों को ठीक से ह्मपे हंसने दो
वजह कभी भी तय कर लेंगे ऐसी भी क्या जल्दी है
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आहिस्ता आहिस्ता आना मुझसे मिलने ..ख्वाबों में
वर्ना ज़ालिम लोग कहेंगे ...ऐसी भी क्या जल्दी है
ये तो तसल्ली होने दे के तेरे हाथों कत्ल हुए
शुक्र अदा भी कर ही देंगे ऐसी भी क्या जल्दी है
:- वैभव जोशी, सोबतीचा करार :-
त्रिवेणी , रुबाई , गज़ल (मराठी / हिंदी )
विशेष आभार - वैभव जोशी
वैभव जोशी यांच्या इतर कविता -
1 अभिप्राय
chan
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