मराठी कविता संग्रह

कहीं पहले मिले हैं हम

18:35 सुजित बालवडकर 0 Comments Category :

कहीं पहले मिले हैं हम
धनुक के सात रंगों से बने पुल पर मिलें होंगे...
जहाँ पारियाँ तुम्हारे सुर के कोमल तेवरों पर
रक्स करती थीं
परिंदे और नीला आसमां
झुक झुक के उनको देखते थे
कभी ऐसा भी होता है हमारी ज़िंदगी में
कि सब सुर हार जाते है
फ़क़त इक चीख़ बचती है
तुम ऐसे में बशारत बन के आते हो
और अपनी लय के जादू से
हमारी टूटती साँसो से इक नगमा बनाते हो
कि जैसे रात कि बंजर स्याही से सहर फूटे
तुम्हारे लफ्ज़ छू कर तो हमारे ज़ख़्म लौ देने लगे हैं...!

(मंसूरा अहमद)

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