यादोंके बादल
जिंदगी मे जहर घुलाने आये
यादों के बादल रुलाने आये
गजल गायी थी शायरों के साथ
नज्म लिखी थी याद है वह रात
शमा बुझाकर, जलाने आये
यादों के बादल रुलाने आये
तडप कैसी है, मुश्किल है जीना
जहर यादोंका मिश्किल है पीना
चुरा कर नींद, सुलाने आये
यादों के बादल रुलाने आये
गये होंगे कहीं और के साथ
आईना देख डरे और है बात
दाग दामन का धुलाने आये
यादों के बादल रुलाने आये
जब सुनी आहट मेरी कोठी पर
शर्तिया थे तब नशे की चोटी पर
गलत हम समझे, बुलाने आये
यादों के बादल रुलाने आये
आये तो क्या आये! देर के बाद
हौसला रखे क्या मौत के बाद?
कफन मेरा वो सिलाने आये
यादों के बादल रुलाने आये
- प्रतिभा साबळे
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