बचपन के दिन
बचपन के दिन बहुत याद आते हैं...
उस आकर्शन की डोर में बढ़ते चले जाते हैं...!!!
वो लरकपन वो मासुमियत हम भूल गए शायद...
अब तो परेशानियों के बल पर जाते हैं...
बचपन के दिन बहुत याद आते हैं...!!!
कंचे खेला करते थे...झूले झूला करते थे...
और नाप लेते थे आसमान बिना किसी फीते के...!!!
बचपन की वो अमिरी ना जाने कहाँ खो गयी...
जब बारिश के पानी में हमारे भी जहाज चला करते थे...!!!
जब छोटे थे तब बड़े होने की बड़ी चाह थी...!!!
अब पता चला की -
अधूरे एहसास और टूटे सपनों से...
अधूरे होम-वर्क और टूटे खिलोने अच्छे थे...!!!!
- अनामिक ( Poet unknown)
Image Curtsey - Darshan Ambre
5 अभिप्राय
We love to read your collections of Kavitas regularly, enjoy, feel that your literary works are of v high standards.
ReplyDeletelovely feelings,tremendous efforts seems in your collections ,we can feel the feelings on which u compose the poems
ReplyDeleteDear dhanpal bansod,
ReplyDeleteThank you very much for your comments and appreciation. One confession, I don't compose poems. I just collect them. I don't know poet's name for this peom. But thank you for your appreciation.
- Sujit
[...] इंदिरा संत ← बचपन के दिन [...]
ReplyDeletevery very nice!
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