मराठी कविता संग्रह

सरमाया

02:09 सुजित बालवडकर 0 Comments Category :

मुडकर देखा तो बिती
गलियोंने मुझको चौकाया
पिघले मोमसा हर नुक्कड पर
मैंने खुदही को पाया

जान गया के मै जल रहा हूं
शायद जबसे मै चल रहा हूं
हर इक मोड पे हर नुक्कड पे
कतरा कतरा पिघला रहा हूं
बुझ भी तो इक पल जाऊंगा
बीते कल मे ढल जाउंगा
तब इन बुंदोंमे ही दुनिया
पायेगी मेरा सरमाया
जीन मुंदोमें हर नुक्कड पर
आज खुद ही को है पाया

-गुरु ठाकूर

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