जुबाँ तो डरती है कहने से
जुबाँ तो डरती है कहने से
पर दिल जालीम कहता है
उसके दिल में मेरी जगह पर
और ही कोई रहता है ॥ धृ ॥
बात तो करता है वोह अब भी
बात कहाँ पर बनती है
आदत से मैं सुनती हूँ
वोह आदत से जो कहता है ॥ १ ॥
दिल-ओ-जेहन में उसके जाने
क्या कुछ चलता रहता है
बात बधाई की होती है
और वो आहें भरता है ॥ २ ॥
रात को वोह छुपकेसे उठकर
छतपर तारे गिनता है
सेज पे मेरी इक टुटासा
सपना सोया रहता है ॥ ३ ॥
दिलका क्या है,
भर जाये या उठ जाये,
एक ही बात...
जाने या अनजाने
शिशा टूटता है तो टूटता है ॥ ४ ॥
- संदीप खरे.
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