छोटी-छोटी चित्रायी यादें - उड़ान
छोटी-छोटी चित्रायी यादें
बिछी हुई हैं लम्हों की लॉन पर
नंगे पैर उन पर चलते-चलते
इतनी दूर चले आये
कि अब भूल गए हैं कि
जूते कहाँ उतारे थे!
एड़ी कोमल थी जब आये थे
थोड़ी सी नाज़ुक है अभी भी
और नाज़ुक ही रहेगी
इन खट्टी-मीठी यादों की शरारत
जब तक इन्हें गुदगुदाती रहे
सच, भूल गए हैं
कि जूते कहाँ उतारे थे
पर लगता है,
कि अब उनकी जरुरत नहीं!
- उड़ान (२०१०)
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